||अमरनाथ गुफा का रहस्य || इतिहास मान्यता है कि इस गुफा में भगवान शिव और माता पार्वती के अमरत्व का महत्व छिपा है, इसलिए हिंदुओं में इसकी इतनी मान्यता है इस पवित्र गुफा के दर्शन करने से भक्तों की सभी मुरादें पूरी होती हैं, हालांकि इसके दर्शन बेहद दुर्लभ हैं, बड़ी मुश्किलों के बाद भक्तगण इसके दर्शन करने के लिए यहां पहुंचते हैं इस पवित्र मंदिर का अपना एक ऐतिहासिक और पौराणिक महत्व है, इस गुफा में जो शिवलिंग है वो पूरे साल बर्फ से ढका रहता है, इसलिए भोले को बाबा बर्फानी या हिमानी शिवलिंग कहते हैं,इस पवित्र शिवलिंग के दर्शन करने दूर-दूर से भक्त जन यहां पहुंचते हैं अमरनाथ की यात्रा पूरे साल में करीब 45 दिन की होती है, जो ज्यादातर जुलाई और अगस्त के बीच में होती है आषाढ़ पूर्णिमा से लेकर भाई-बहन के पावन पर्व रक्षाबंधन तक होने वाले पवित्र शिवलिंग दर्शन के लिए दुनिया के कोने-कोने से शिव भक्त अमरनाथ यात्रा पर जाते है| 1)अमरनाथ गुफा में क्या है खास ? इतिहास में इस बात का भी जिक्र किया जाता है कि महान शासक आर्य राजा कश्मीर में बर्फ से बने शिवलिंग की पूजा करते थे, रजतरंगिनी किताब में भी इसे अमरनाथ या अमरेश्वर का नाम दिया गया है कहा जाता है की 11 वीं शताब्दी में रानी सुर्यमठी ने त्रिशूल, बनालिंग और दुसरे पवित चिन्हों को मंदिर में भेंट स्वरुप दिया जो यहा की खासियत है, अमरनाथ गुफा की यात्रा की शुरुआत प्रजाभट्ट द्वारा की गई थी| 2)पवित्र गुफा की खोज ? मध्य कालीन समय के बाद, 15 वी शताब्दी में दोबारा धर्मगुरूओं द्वारा इसे खोजने से पहले लोग इस गुफा को भूलने लगे थे इस गुफा से संबंधित एक और कहानी भृगु मुनि की है कश्मीर की घाटी जलमग्न है और कश्यप मुनि ने कई नदियों का बहाव किया था इसलिए जब पानी सूखने लगा तब सबसे पहले भृगु मुनि ने ही सबसे पहले भगवान अमरनाथ जी के दर्शन किये थे।इसके बाद जब लोगों ने अमरनाथ लिंग के बारे में सुना तब यह लिंग भगवान भोलेनाथ का शिवलिंग कहलाने लगा. 40 मीटर ऊंची अमरनाथ गुफा में पानी की बूंदों जम जाने की वजह से पत्थर का एक आरोही निक्षेप बन जाता है हिन्दू धर्म के लोग इस बर्फीले पत्थर को शिवलिंग मानते है, यह गुफा मई से अगस्त तक मोम की बनी हुई होती है क्योंकि उस समय हिमालय का बर्फ पिघलकर इस गुफा पर आकर जमने लगता है और शिवलिंग का आकार ले लेता है कहा जाता है की सूर्य और चन्द्रमा के उगने और अस्त होने के समय के अनुसार इस लिंग का आकार भी कम-ज्यादा होता है लेकिन इस बात का कोई वैज्ञानिक सबूत नही है हिन्दू मान्यताओं के अनुसार, यह वही गुफा है जहां भगवान शिव ने माता पार्वती को जीवन के महत्त्व के बारे में समझाया था।दूसरी मान्यताओं के अनुसार बर्फ से बना हुआ पत्थर पार्वती और शिवजी के पुत्र गणेशजी का का प्रतिनिधित्व करता है।इस गुफा का मुख्य वार्षिक तीर्थस्थान बर्फ से बनने वाली शिवलिंग की जगह ही है। 3)अमरनाथ गुफा से जुड़ा 2 कबूतरों का रहस्य ? पौराणिक कथाओं के अनुसार अमरनाथ की इस पवित्र गुफा में भगवान शिव ने माता पार्वती को मोक्ष का मार्ग दिखाया था इस दौरान भोलेनाथ और माता पार्वती के बीच एक संवाद हुआ था कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती ने भगवान शिव से मोक्ष का मार्ग जानने की उत्सुकता जताई जिसके बाद भोलेनाथ उन्हें लेकर एकांत में गए जहां कोई अन्य इस संवाद को ना सुन सके. जब भगवान शिव यह अमृतज्ञान माता पार्वती को सुना रहे थे तो उस समय वहां एक कबूतर का जोड़ा उसी गुफा में मौजूद था उस जोड़ें ने भी मोक्ष के मार्ग से जुड़ी वह कथा सुन ली कहते हैं कि इस कथा को सुनने के बाद यह कबूतर जोड़ा अमर हो गया और आज तक इस गुफा में मौजूद है। 4)अमरनाथ गुफा का रहस्य एक तोते व वेदव्यास के पुत्र से किस प्रकार जुड़ा है ? एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान शिव माता पार्वती को अमृतज्ञान सुना रहे थे तो उस गुफा में एक शुक यानि हरी कंठी वाला तोता भी मौजूद था जो कि यह ज्ञान सुन रहा था कथा सुनते समय माता पार्वती को नींद आ गई ऐसे में उनकी जगह वह शुक कथा के दौरान हुंकार भरने लगा जब भगवान शिव को यह बात पता चली तो वह शुक को मारने के लिए दौड़े और उसके पीछे अपना त्रिशूल छोड़ा शुक अपनी जान बचाने के लिए तीनों लोकों में भागता रहा और फिर व्यासजी के आश्रम में आ गया जहां वह सूक्ष्म रूप धारण कर व्यासजी की पत्नी के मुख में घुस गया और उनके गर्भ में रह गया पौराणिक कथा के अनुसार 12 वर्ष तक वह शुक उसी गर्भ में रहा एक बार भगवान कृष्ण ने स्वंय आकर शुक को आश्वासन दिया कि बाहर आने पर तुम्हारे ऊपर माया को कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा इसके बाद वह गर्भ से बाहर निकला और व्यास जी का पुत्र कहलाया शुक ने गर्भ में ही वेद, उपनिषद, दर्शन और पुराण आदि का ज्ञान प्राप्त कर लिया था गर्भ से बाहर आते ही वह तपस्या के लिए और बाद में शुकदेव मुनि के नाम से दुनिया में प्रसिद्ध हुए।
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