||33 कोटि देवता || 33 करोड़ देवी देवता नहीं होते, इसमें जो करोड़ शब्द है वो कई हजार ,लाख ,करोड़ वाला नहीं है बल्कि इसमें जो करोड़ शब्द है उसका संस्कृति में अर्थ होता है कोटि यानि प्रकार,मतलब 33 प्रकार के देवी देवता , अगर इंग्लिश में बात की जाए तो इसे हम टाईप और कैटेगोरी भी कह सकते है यानी 33 टाइप्स ऑफ गॉड और कही न कही इसका सम्बन्ध हमारी रीढ़ की हड्डी से भी हो सकता है क्युकी रीढ़ की हड्डी में 33 हड्डियाँ है इसी प्रकार सनातन धर्म में बहुत कुछ रहस्य छिपा हुआ है । 1)सनातन धर्म का वास्तव में क्या अर्थ है ? सनातन, जिसका अर्थ होता है जो हमेशा था, है, और हमेशा रहेगा। सनातन धर्म को दुनिया का सबसे प्राचीन धर्म होने की मान्यता प्राप्त है। धीरे धीरे इसे ही हिन्दू धर्म कहा जाने लगा। इसकी विशालता का अंदाजा इसी बात से लग जाता है कि सनातन धर्म में कुल देवी देवताओं की संख्या 33 कोटि बताई जाती है।इसी 33 कोटि के आधार पर लोग इसमें 33 करोड़ देवी देवताओं के होने की बात कहते है जो सुनने में कुछ अजीब सा लगता है।इस पर किसी को भी आश्चर्य हो सकता है। इसका कारण अधूरा ज्ञान है जो हानिकारक हो सकता है। 2)हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवताओं पर सबसे बड़ा मिथ क्या है ? एक बहुत बड़ा मिथ है कि हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी-देवता है। सभी के नाम और स्वरूप अलग-अलग है। बातचीत और व्यंग्य में भी इस बात का कई बार जिक्र किया जाता है। लेकिन सच्चाई कुछ और है। दरअसल, 33 करोड़ देवी-देवता की बात कोरी कल्पना है। ये शब्दों का गलत अर्थ निकालने जैसा है। वास्तव में एक शब्द के दो अर्थ होने से ये भ्रम फैला है। जबकि, शास्त्रों ने स्पष्ट लिखा है, और व्याख्या करने वालों ने इसका गलत अर्थ निकालकर 33 करोड़ का आंकड़ा रख दिया। शास्त्रों में 33 करोड़ नहीं, बल्कि 33 कोटि देवता बताए गए है। कोटि शब्द का अर्थ है प्रकार यानी हिन्दुओं के 33 प्रकार के देवता है। कोटि शब्द को ही बोलचाल की भाषा में करोड़ में बदल दिया गया। इसलिए मान्यता प्रचलित हो गई कि कुल 33 करोड़ देवी-देवता है।वेद, पुराण, गीता, रामायण, महाभारत या किसी भी अन्य धार्मिक ग्रन्थ में ये नहीं लिखा कि हिन्दू धर्म में 33 करोड़ देवी देवता है और यही नहीं देवियों को कहीं भी इस गिनती में शामिल नहीं किया गया है। 3) 33 कोटि देवताओं के नाम ? 33 कोटि देवताओं में आठ वसु, ग्यारह रुद्र, बारह आदित्य, इंद्र और प्रजापति शामिल है। कुछ शास्त्रों में इंद्र और प्रजापति के स्थान पर दो अश्विनी कुमारों को 33 कोटि देवताओं में शामिल किया गया है। आठ वसुओं के नाम- 1. आप 2. ध्रुव 3. सोम 4. धर 5. अनिल 6. अनल 7. प्रत्यूष 8. प्रभाष । ग्यारह रुद्रों के नाम- 1. मनु 2. मन्यु 3. शिव 4. महत 5. ऋतुध्वज 6. महिनस 7. उम्रतेरस 8. काल 9. वामदेव 10. भव 11. धृत-ध्वज । बारह आदित्य के नाम- 1. अंशुमान 2. अर्यमन 3. इंद्र 4. त्वष्टा 5. धातु 6. पर्जन्य 7. पूषा 8. भग 9. मित्र 10. वरुण 11. वैवस्वत 12. विष्णु । दो अश्विनी कुमारों के नाम- 1.'नासत्य' 2. 'द्स्त्र' । 4)हिन्दू धर्म के अनुसार किस पशु में 33 कोटि देवताओं का वास माना गया है ? गौ माता में 33 कोटि देवताओं का वास होता है,गौ को पवित्र माना जाता है और उसे माता का दर्जा दिया गया है,गौ माता को दयालुता, भौतिकवाद, पवित्रता, धन, प्रतिष्ठा और शक्ति के गुण दिए गए है, गाय को 'गौ माता' के रूप में जाना जाता है और उसे इसी तरह पूजा जाता है,कहते है कि जो मनुष्य प्रात: स्नान करके गौ स्पर्श करता है, वह पापों से मुक्त हो जाता है। संसार के सबसे प्राचीन ग्रंथ वेद है और वेदों में भी गौ माता की महत्ता और उसके अंग-प्रत्यंग में दिव्य शक्तियाँ होने का वर्णन मिलता है। मान्यता है कि गौ माता के पैरों में लगी हुई मिट्टी का तिलक करने से तीर्थ-स्नान का पुण्य मिलता है। यानी सनातन धर्म में गौ माता को दूध देने वाला एक निरा पशु न मानकर सदा से ही उसे देवताओं की प्रतिनिधि माना गया है। 5)गौ माता के अंगों में 33 कोटि देवताओं का निवास ? पद्म पुराण के अनुसार गौ माता के मुख में चारों वेदों का निवास है। उनके सींगों में भगवान शंकर और विष्णु सदा विराजमान रहते है।गौ माता के शरीर के अलग-अलग अंगों में अलग-अलग देवताओं का वास माना जाता है।गौ माता के मस्तक में ब्रह्मा का वास माना जाता है।गौ माता के ललाट में रुद्रों का वास माना जाता है।गौ माता के सींगों के आगे वाले भाग में भगवान इंद्र का वास माना जाता है।गौ माता के कानों में अश्विनीकुमारों का वास माना जाता है।
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