||ठाकुर जी की योगमाया || इतिहास कृष्ण जन्माष्टमी के दिन असंख्य भक्तों के मन का उत्साह आज भी द्वापर युग की याद दिलाता है। जन्माष्टमी पर्व ठाकुर जी का जन्मोत्सव तो है ही, साथ ही ठाकुर जी की माया को विस्तार देने वाली योगमाया का भी प्रादुर्भाव दिवस है, भगवती योगमाया ने कन्या के रूप में उस युग में जन्म लेकर, मानव जाति को यह दिव्य संदेश दिया कि कन्या का जन्म बलिदान के लिए नहीं होता।वैष्णव धर्म में योगमाया को ठाकुर जी की आंतरिक शक्ति माना जाता है,श्रीमद्भागवद्पुराण में देवी योगमाया को ही विंध्यवासिनी कहा गया है। शिवपुराण में उन्हें ही सती का अंश बताया गया है। 1)योगमाया का ठाकुर जी से क्या संबंध है ? ठाकुर जी भगवान विष्णु के अवतार है, जब विष्णु के कानों के मैल से मधु और कैटभ नामक दो महादैत्य प्रकट होते है और ब्रह्मा को मारने के लिए आगे बढ़ते है तो ब्रह्मा योगमाया शक्ति का आह्वान करते है।ब्रह्मा योगमाया शक्ति का आह्वान करते हुए कहते है कि हे योगमाया आपने विष्णु को निद्रा में सुला रखा है।आपने ही उन्हें इस प्रकार विमोहित कर रखा है कि वो संसार को लय में जानकर संसार के पालन से विमुख हो गए है। ब्रह्मा कहते है कि हे योगमाया तुम्हारी माया के प्रभाव से ही इस संसार की उत्पत्ति, पालन और संहार का कार्य होता है। आपने ही इस चराचर जगत के हर एक प्राणी को विमोहित कर रखा है । आपके ही प्रभाव से सभी जीव दुखो, सुखों का अनुभव करते है। हे देवी आप विष्णु के हदय में वास करती है । कृपा करके आप विष्णु को उनकी निद्रा से मुक्त करे और मधु कैटभ के वध का माध्यम बनिए। ब्रह्मा की स्तुति के पश्चात योगमाया विष्णु के नेत्रों, नासिका और हृदय से निकलती है।योगमाया जिस स्वरुप में निकलती है उसका श्री दुर्गा सप्तशती में अद्भुत वर्णन है। वो महाकाली का वो स्वरुप है जिनकी 10 भुजाएं और 10 पैर है, महाकाली ही महामाया के रुप में विष्णु को विमोहित करती है और विष्णु को निद्रा में सुला कर खुद संसार का पालन कार्य करती है। योगमाया शक्ति का वर्णन द्वापर युग में भी उस वक्त आता है जब वो ठाकुर जी की बहन के रुप में अवतरित होती है और जब कंस उनका वध करने का प्रयास करता है तो वो उसके हाथो से निकल कर उसे शाप देती है कि उसे मारने वाला पैदा हो चुका है। 2)ठाकुर जी की योगमाया का मंदिर कहाँ स्थित है ? यह प्राचीन मंदिर महाभारत के समय से है, योगमाया का मंदिर उत्तर प्रदेश में गंगा नदी के तट पर मिर्जापुर से 8 किमी दूर विंध्याचल में स्थित है । इस मंदिर को कजला देवी के नाम से भी जाना जाता है,क्योंकि यहाँ देवी काली की प्रतिमा है जिन्हे कजला देवी कहा जाता है, योगमाया के शरीर जिसे कंस ने कारागार की दिवारों पर फेंका था उसका धड़ विंध्याचल में जा गिरता है और सिर वर्तमान दिल्ली के महरौली स्थित योगमाया मंदिर में जा गिरता है। इन दोनों ही स्थानों पर योगमाया के सिद्ध मंदिर है । 3)योगमाया के ठाकुर जी की बहन के रूप में अवतार लेने के मुख्य कारण क्या थे ? योगमाया का ठाकुर जी की बहन के रूप में अवतार लेने के मुख्य कारण यह थे की जब द्वापर युग में भगवान विष्णु ने ठाकुर जी के रूप में जन्म लिया,तब ठीक उनसे पहले देवी काली ने योग माया के रूप में जन्म लिया था।माँ दुर्गा का यह दिव्य अवतार कुछ समय के लिए था। ठाकुर जी की माँ देवकी के सातवें गर्भ को योगमाया ने ही बदलकर कर रोहिणी के गर्भ में पहुँचाया था, जिससे बलराम का जन्म हुआ। योगमाया ने यशोद्धा के गर्भ से जन्म लिया था। इनके जन्म के समय यशोद्धा गहरी नींद में थी और उन्होंने इस बालिका को देखा नही था।वहीं कंस के कारागार में देवकी के आठवें पुत्र के जन्म लेने के बाद वसुदेव ने उस बालक को योगमाया के प्रभाव के कारण नंद के घर यशोद्धा के पास लिटा दिया, जिससे बाद में आँख खुलने पर यशोद्धा ने बालिका के स्थान पर पुत्र को ही पाया।मां योगमाया ने कृष्ण के साथ योगविद्या और महाविद्या बनकर कंस, चाणूर और मुष्टिक आदि शक्तिशाली असुरों का संहार कराया था। जब कंस ने देवकी की आठवीं संतान समझकर योगमाया को उसके पैरों से पकड़कर जमीन पर जोर से पटक कर मारना चाहा तो योगमाया ने अट्टाहस कर कंस से कहा, मैं चाहूं तो तुम्हें इसी समय मार सकती हूँ , किन्तु तुमने मेरे पैर पकड़े है, और तुम्हारा काल कोई दूसरा है, इस वजह से मैं तुम्हारी जान नही ले सकती। योगमाया कंस के चंगुल से छूटकर अंतर्ध्यान होकर स्वर्ग को जाने से पहले कंस को चेतावनी दे गई थी कि तुम्हारा काल पैदा हो चुका है। 4)किस प्रकार योगमाया सभी जीवो को प्रभावित करती है ? योगमाया भगवान की अत्यन्त प्रभावशाली वैष्णवी ऐश्वर्य-शक्ति है जिसके वश में सम्पूर्ण जगत रहता है । उसी योगमाया को अपने वश में करके भगवान लीला के लिए दिव्य गुणों के साथ मनुष्य जन्म धारण करते है और साधारण मनुष्य से ही प्रतीत होते है । इसी मायाशक्ति का नाम योगमाया है ।साथ ही योगमाया महाकाली का वो स्वरुप है जिससे इस सृष्टि का पालन कार्य होता है। ये ठाकुर जी की परा और अपरा दोनों ही शक्ति मानी गई है। विष्णु इनकी शक्ति के बिना उसी तरह से निष्क्रिय हो जाते है जैसे शिव महाकाली की शक्ति के बिना शव हो जाते है। योगमाया वो शक्ति है जो हमारी इच्छाओं को नियंत्रित करती है। हम जिस भी प्रकार के मोह में बंधे होते है वो योगमाया शक्ति की वजह से ही प्रभावित होते है। 5)जब योगमाया ने स्वर्ग की और प्रस्थान किया तो ठाकुर जी ने उन्हें क्या वरदान दिए ? सभी लोग तुम्हें देवी मानकर तुम्हारे नाम और स्थान पर मन्दिर बनाएंगे । दुर्गा, भद्रकाली, विजया, वैष्णवी, चण्डिका, कृष्णा, शारदा, अम्बिका आदि नामों से तुम विख्यात होओगी । तुम लोगों को मुँहमाँगे वरदान देने में समर्थ होओगी। तुम्हें अपनी समस्त अभिलाषाओं को पूर्ण करने वाली जानकर भक्त घनघोर शब्द करने वाले घण्टों, लम्बी-लम्बी लाल-पीली-केसरिया ध्वजाओं से एवं फल, फूल, धूप-दीप, मिष्ठान्न, श्रीफल नारियल, भेंट आदि विभिन्न सामग्रियों से तुम्हारी पूजा करेंगे क्योंकि आप ही सर्वकाम वरप्रदायिनी है, तथा इसके बाद ठाकुर जी ने अपनी लीलाओं के सृजन और विस्तार के लिए फिर से योगमाया को रंगमंच तैयार कराने का आदेश दिया ।
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