||राजा दुष्यंत और शंकुतला की प्रेम कहानी|| इतिहास राजा दुष्यंत और शंकुतला की इस प्रेम कथा का वर्णन रामायण के बालकाण्ड और महाभारत में मिलता है इस कहानी का आरंभ विश्वामित्र और मेनका के मिलन से होता है महर्षि विश्वामित्र जन्म से एक ब्राह्मण नहीं थे, लेकिन उन्होंने अपने तप और उग्र तपस्या के बल, लगभग 1000 वर्षो की तपस्या के पश्चात ऋषि होने का वरदान प्राप्त कर लिया| लेकिन विश्वामित्र ब्रह्मा-ऋषि बनना चाहते थे इसलिए विश्वामित्र ने पुष्कर के तट पर जाकर पुन: तपस्या शुरू कर दी ऋषि विश्वामित्र की इस कठोर तपस्या से राजा इंद्र विचार में पड़ गए इंद्र देव को डर था की कहीं विश्वामित्र इन्द्रासन नहीं मांग ले यह विचार कर तपस्या भंग करने के लिए इंद्र ने अप्सरा मेनका को एक कन्या के रूप में धरती पर भेजा नित्य की भांति ऋषि विश्वामित्र अपने दैनिक कार्यो में लगे हुए थे तभी पुष्कर सर के तट पर मेनका नहा रही थी मेनका का बदन देखकर विश्वामित्र को काम का मोह हो गया और विश्वामित्र ने मेनका से परिचय किया विश्वामित्र ने मेनका को अपने साथ कुटिया में रहने का निमंत्रण दिया अप्सरा मेनका ने ऋषि विश्वामित्र को काम-पाश में बांध लिया और उनके साथ कुटीया में रहने लगी विश्वामित्र और मेनका दस वर्षो तक साथ रहे, इसके दौरान दोनों के संयोग से पुत्री शकुंतला का जनम हुआ विश्वामित्र को महसूस हुआ की उनकी तपस्या तो भंग हो गई, उन्होंने अपनी दिव्य शक्तियों से पता लगाया की ये सब देवताओं का किया कराया है, उस समय ऋषि विश्वामित्र के गुस्से से मेनका कांपने लगी लेकिन विश्वामित्र ने मेनका पर कोई क्रोध नहीं किया और उसको वहां से जाने को कह दिया महर्षि विश्वामित्र ने काम पर विजय प्राप्त करने के लिए कामदेव की तपस्या करने का निश्चय किया इसके लिए विश्वामित्र ने अपनी पुत्री शकुंतला को ऋषि कण्व के आश्रम पर छोड़ दिया और स्वयं काशी नदी के किनारे जाकर तपस्या करने लगे| 1)शकुंतला और राजा दुष्यंत की पहली मुलाकात किस प्रकार हुई थी ? मेनका की ही तरह शकुंतला भी बेहद रूपवान थीं अपने माता-पिता द्वारा त्याग दिए जाने के बाद ऋषि कण्व शकुंतला को अपने आश्रम ले आए और यही शकुंतला का लालन-पालन हुआ और वह बड़ी हुईं एक दिन हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत शिकार करते हुए ऋषि कण्व के आश्रम तक पहुंच गए और राजा दुष्यंत ने आश्रम के बाहर से ऋषि को आवाज लगाई, आवाज सुनकर शकुंतला आश्रम से बाहर निकलीं और बोलीं कि ऋषि अभी आश्रम में नहीं है ,वह तीर्थ यात्रा पर गए है,साथ ही शकुंतला ने राजा दुष्यंत का आश्रम में स्वागत किया शकुंतला को देख राजा दुष्यंत बोले महर्षि तो ब्रह्मचारी है, तो आप उनकी पुत्री कैसे हुईं तब शकुंतला ने बताया कि वह महर्षि की गोद ली हुई संतान है, असल में उसके माता पिता अप्सरा मेनका और विश्वामित्र है, शकुंतला के रूप और मधुर वाणी सुनकर राजा पहले ही मोहित हो चुके थें शकुंतला से बात करते हुए राजा दुष्यंत ने कहा कि तुम मुझे बेहद पसंद आईं, अगर तुम्हें कोई आपत्ति न हो तो मैं तुमसे विवाह करना चाहता हूं शकुंतला भी राजा दुष्यंत को पसंद करने लगी थीं, इसलिए राजा दुष्यंत का विवाह प्रस्ताव सुनकर शकुंतला ने भी हां कर दी जिसके बाद दोनों ने विवाह कर लिया विवाह के बाद कुछ समय शकुंतला के साथ बिताने के बाद राजा दुष्यंत वापस अपने राज्य हस्तिनापुर लौटने लगे तो उन्होंने दौबारा लौटकर शकुंतला को अपने साथ ले जाने का वचन दिया और निशानी के रूप में उन्होंने अपनी राज मुद्रिका शकुंतला की उंगली में पहना दी| 2)राजा दुष्यंत अपना प्रेम किस प्रकार भूल गए ? एक दिन कण्व ऋषि के आश्रम में दुर्वासा ऋषि आए दुर्वासा ऋषि ने आश्रम के बाहर से आवाज लगाई, लेकिन उस समय शकुंतला पूरी तरह राजा दुष्यंत की यादों में खोई हुई थीं, इस कारण वह उनकी आवाज सुन नहीं पाई ऋषि को लगा कि शकुंतला उनका अपमान कर रही है और उसी क्षण ऋषि ने शकुंतला को श्राप दिया कि जिस किसी के ध्यान में लीन होकर तूने मेरा निरादर किया है, वह तुझे भूल जाएगा यह सुनकर शकुंतला का ध्यान टूटा तो उन्होंने ऋषि से क्षमा मांगी, जिसके बाद ऋषि ने शकुंतला को उपाय बताया कि उसका दिया कोई प्रतीक चिन्ह होगा, जिसे देखकर उसे तू याद आ जाएगी और यह कहकर ऋषि वहां से चले गए| 3)शंकुतला की क्या निशानी खो गई थी ? जब ऋषि तीर्थ यात्रा से वापस लौटे तब शकुंतला ने उन्हें पूरा वृतांत सुनाया, जिसके बाद ऋषि ने अपने शिष्यों के साथ शकुंतला को हस्तिनापुर भेज दिया, रास्ते में शकुंतला की अंगूठी पानी में गिर गई और मछली ने उसे निगल लिया उसके बाद शकुंतला जब राजा दुष्यंत के दरबार में पहुंचीं तो, ऋषि दुर्वासा के श्राप के कारण राजा दुष्यंत उन्हें भूल चुके थे वह शकुंतला को भला बुरा कहने लगे, तब शकुंतला की माता मेनका प्रकट होती है और शकुंतला को अपने साथ ले जाती है| 4)राजा दुष्यंत और शंकुतला का मिलन दोबारा कैसे हुआ ? जिस मछली ने शकुंतला की अंगूठी को निगला था, एक दिन वह मछली मछुआरे के जाल में फंस गई जब मछुआरे ने उसे काटा तो उसके पेट से अंगूठी निकली मछुआरे ने देखा कि यह अंगूठी तो राजमुद्रिका है उसे लेकर महाराज को देने गया अंगूठी को देखते ही राजा दुष्यंत को सब कुछ याद आ गया और वह शकुंतला की तलाश में जुट गए इस दौरान इंद्रदेव ने देवासुर युद्ध में राजा दुष्यंत को अपनी सहायता के लिए बुलाया युद्ध जीतने के बाद जब आकाश मार्ग से वह वापस लौट रहे थे, तो रास्ते में उन्हे कश्यप ऋषि का आश्रम दिखा, उनके दर्शन लिए दुष्यंत वहां रुके दुष्यंत ने देखा कि कश्यप ऋषि के आश्रम में सुंदर सा बालक शेर के साथ खेल रहा है दरअसल ये बालक कोई और नहीं शकुंतला का पुत्र था जैसे ही वह उसे गोद में उठाने के लिए आगे बढ़े वैसे ही शकुंतला की सखी चिल्लाते हुए बोली, आप इस बालक को न छुएं उसकी भुजा में बंधा काला धागा सांप बनकर आपको डस लेगा लेकिन दुष्यंत ने उस बालक को गोद में उठा लिया और उसकी भुजा में बंधा काला धागा टूटकर धरती पर गिर गया शकुंतला को जब इस बात की जानकारी हुई, तब जैसे ही वह राजा दुष्यंत के सामने आई उन्होंने शकुंतला को पहचान लिया और अपने बुरे व्यवहार के लिए मांफी मांगी और शकुंतला और अपने पुत्र को लेकर हस्तिनापुर आए राजा दुष्यंत ने अपने पुत्र का नाम भरत रखा जो बाद में एक प्रतापी सम्राट बने और उन्हीं के नाम पर हमारे देश का नाम भारतवर्ष हुआ|
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