||शंख|| 1)शंख क्या है ? पौराणिक कथाओं के अनुसार शंख नाद का प्रतीक है| नाद से ही सृष्टी का आरम्भ है और उसी से ही अंत है| दुसरे शब्दों में कहा जाए तो शंख को ॐ के समान ही माना गया है| शंख की ध्वनि पवित्र ओम ध्वनि का प्रतीक है। हिंदू धर्म में शंख का विशेष महत्व माना गया है। हर शुभ व मांगलिक कार्य में शंख जरूर बजाया जाता है। कई घरों में लोग पूजा के दौरान नियमित रूप से शंख बजाते है शास्त्रों के मुताबिक शंख बजाने से सुख-समृद्धि सहित कई अन्य लाभ होते है वहीं वैज्ञानिको के अनुसार शंख बजाने से कई बीमारियां दूर होती है,शास्त्रों में शंख को बड़ा ही कल्याणकारी बताया गया है, पूजा-पाठ में शंख बजाने का चलन युगों-युगों से चला आ रहा है, यह हिन्दु धर्म में अति पवित्र माना जाता है। यह भगवान विष्णु के दांए ऊपरी हाथ में शोभा पाता दिखाया जाता है। धार्मिक अवसरों पर इसे फूँक मार कर बजाया भी जाता है। हिन्दू धर्म के अलावा भी जैन, बौद्ध और वैष्णव धर्म में भी शंख की आवाज़ या ध्वनि को शुभ माना जाता है| 2)कैसे हुआ शंख का जन्म ? शिवपुराण के अनुसार शंखचूड़ नाम का एक महापराक्रमी दैत्य था। शंखचूड़ दैत्यराम दंभ का पुत्र था। दैत्यराज दंभ की कोई संतान नहीं थी तब उसने संतान प्राप्ति के लिए भगवान विष्णु की कठिन तपस्या की। तप से प्रसन्न होकर विष्णु प्रकट हुए। उन्होंने दंभ से वर मांगने के लिए कहा तब दंभ ने तीनों लोकों के लिए अजेय महापराक्रमी पुत्र का वर मांगा। श्रीहरि तथास्तु कहकर अंतर्धान हो गए। इसके बाद दंभ के यहां शंख का जन्म हुआ जिसका नाम शंखचूड़ पड़ा। 3)शिव की पूजा में शंख को वर्जित क्यों माना गया है ? शंखचूड़ ने पुष्कर में ब्रह्माजी को प्रसन्न करने के लिए घोर तप किया। तप से प्रसन्न होकर ब्रह्माजी ने वर मांगने के लिए कहा। तब शंखचूड़ ने वर मांगा कि वो देवताओं के लिए अजेय हो जाए। ब्रह्माजी ने तथास्तु बोला और उसे श्रीकृष्ण कवच दे दिया।जब तक उसके पास श्री कृष्ण का कवच था तब तक उसका वध नहीं हो सकता था ,इसलिए विष्णु ने ब्राह्मण रूप धारण करके दैत्यराज से उसका श्रीकृष्ण कवच दान में ले लिया।तब शिव ने शंखचूड़ को अपने त्रिशुल से भस्म कर दिया। कहा जाता है उसकी हड्डियों से शंख का जन्म हुआ। क्योंकि शंखचूड़ विष्णु भक्त था इसलिए माता लक्ष्मी और श्रीहरि को शंख का जल अत्यंत प्रिय है और सभी देवताओं को शंख से जल चढ़ाने का विधान है। लेकिन शिवजी ने उसका वध किया था तो शंख का जल शिव पूजा में निषेध हो गया। यही वजह है कि भोलेनाथ को शंख से जल नहीं चढ़ाया जाता है।शैव मत में शंख को पूजा मे निषेध माना गया है| 4)शंख किस प्रकार का होता है ? आयताकार रूप में, इसके बीच में एक उभार होता है, लेकिन प्रत्येक छोर पर यह पतला होता है। निचला छोर मुड़ा हुआ और पतला होता है। इसका रंग फीका होता है, और सतह कठोर, भंगुर होती है। घोंघे के गोले की तरह, इसका अंदरूनी भाग खोखला होता है। आंतरिक सतह बहुत चमकदार होती है| हिंदू धर्म में, चमकदार, सफ़ेद, मुलायम नुकीले सिरे वाला और भारी शंख सबसे ज़्यादा पसंद किया जाता है। 5)शंख कितने प्रकार के होते है ? शंख अनेक प्रकार की विशेषताओं और पूजा की पद्धति के अनुसार शंख के प्रकार भिन्न भिन्न है| सबसे बेहतरीन श्रेणी का शंख लक्षद्वीप, मालद्वीप, कैलाश मानसरोवर, श्रीलंका और भारत देश में पाया जाता है| शंख की आकृति के आधार पर इसे तीन भागों में बांटा गया है| पहला – दक्षिणावृति शंख, दूसरा – मध्यावृति शंख और तीसरा – वामावृति शंख| जिस शंख को दायें हाथ से पकड़ा जाता है| उसे दक्षिणावृति शंख कहा जाता है| जिस शंख का मुख बीच में खुलता है| उसे मध्यावृति शंख कहा जाता है तथा जिस शंख को बाएं हाथ में रखा जाता है| वह शंख वामावृति शंख कहलाता है| इनमे से कई शंखो को 10 अलग – अलग प्रकारों से बांटा गया है | 1)कामधेनु शंख – इस शंख की आकृति गाय के मुख के समान ही होती है| इसलिए इसे कामधेनु शंख के नाम से जाना जाता है| यह शंख काफी दुर्लभ माना जाता है और आसानी से किसी भी जगह पर नहीं मिलता है| इस शंख की पूजा करने मात्र से ही आपकी सभी कल्पनाएँ पूर्ण होती है | 2)गणेश शंख – यह शंख भगवान गणेश जी के मुख से समान आकृति का होता है| यह शंख आपको आसानी से मिल जाएगा| यह धन और बुद्धि का विकास करता है| 3)अन्नपूर्णा शंख – इस शंख को माँ अन्नपूर्णा का प्रतीक माना जाता है| इस शंख की स्थापना रसोईघर में करने से कभी भी घर में अन्न की कमी नहीं होती है| अन्नपूर्णा शंख में दूध भरकर घर के सभी कोनों में छिड़कने से घर का वास्तु दोष का निवारण होता है| 4)मोती शंख – मोती शंख को घर के पूजा वाले स्थान पर रखने से स्वास्थ्य और आयु सुरक्षित रहते है| यह शंख दिखने में बिलकुल मोती के आकर का होता है| इसका रंग सफ़ेद होता है और इसमें कई जगहों पर असल मोती भी लगे होते है | 5)विष्णु शंख – इस शंख को भगवान विष्णु के द्वारा धारण किया गया है| इसलिए इसको विष्णु शंख भी कहा जाता है| इस शंख की पूजा करने से घर में धन की कमी दूर होती है| 6)ऐरावत शंख – यह शंख हाथी की सूंड के आकार का होता है| यह स्वास्थ्य और वास्तु दोनों को सुधारने में सहायता करता है| इस शंख को घर के प्रवेश द्वार पर रखने से सभी दोष दूर होते है और नकारात्मक ऊर्जा घर से दूर रहती है| 7)पौंड्र शंख – इस शंख से मनुष्य की याददाश्त तेज होती है| 8)मणिपुष्पक शंख – मणिपुष्पक शंख कार्य में उन्नति लाता है| इसे कार्यस्थल पर पानी भरकर रखा जाता है| 9)देवदत्त शंख – यह शंख उस समय सहायता करेगा जब आप हर जगह से निराश हो जाएंगे तब इसकी पूजा करने से आपके लिए सभी मार्ग खुल जाएँगे| इस शंख को महाभारत के समय अर्जुन ने युद्ध से पहले बजाया था| 10)दक्षिणावृति शंख – यह शंख पूर्ण रूप से भगवान विष्णु का ही प्रतीक है| इस शंख की ख़ास बात यही है कि बाकि शंखों की भांति यह बायीं नहीं अपितु दायीं ओर खुलता है| इसकी पूजा करने से घर में सुख – शांति बनी रहती है| 6)प्राचीनकाल में युद्ध के समय शंख का प्रयोग क्यों होता था ? शंख के शीर्ष के सिरे के पास एक छेद किया जाता है । जब इस छेद से हवा को उड़ाया जाता है, तो यह शंख के चक्रों से होकर गुज़रती है, जिससे तेज़, तीखी, तीखी आवाज़ निकलती है। यही ध्वनि शंख को युद्ध की तुरही के रूप में इस्तेमाल करने का कारण है, ताकि सहायकों और मित्रों को बुलाया जा सके। शंख का इस्तेमाल लंबे समय तक युद्धों में होता रहा। इससे उत्पन्न होने वाली ध्वनि को शंखनाद कहा जाता था । प्राचीन समय में शंख को बजाकर यह बताया जाता था कि राजा दरबार में आने वाले है| सबसे मुख्य शंख की ध्वनि है जो युद्ध के प्रारम्भ और अंत में बजाई जाती है| शास्त्रों में भगवान श्री कृष्ण के शंख पान्चजन्य शंख के बारे में भी बताया गया है| 7)आज के युग में शंख का प्रयोग क्यों किया जाता है ? आजकल, हिंदू मंदिरों और घरों में पूजा के समय शंख बजाया जाता है, खास तौर पर हिंदू आरती के अनुष्ठान में , जब देवताओं को प्रकाश अर्पित किया जाता है। शंख का उपयोग देवताओं, खास तौर पर विष्णु की छवि को स्नान कराने और अनुष्ठान शुद्धिकरण के लिए भी किया जाता है। इन उद्देश्यों के लिए कोई छेद नहीं किया जाता है, हालांकि छिद्र को साफ काट दिया जाता है |शंख का उपयोग चूड़ियाँ, कंगन और अन्य वस्तुएँ बनाने के लिए सामग्री के रूप में भी किया जाता है।शंख को बजाना एक धार्मिक अनुष्ठान है| शंख की ध्वनि किसी का ध्यान आकर्षित करने या किसी बात की चेतावनी देने के लिए बजाई जाती है| किसी भी कार्यों को करने से पूर्व शंख बजाने से शंख की आवज़ को सुनने वाले को भगवान की साक्षात् अनुभूति होती है तथा दिमाग में चल रहे सभी नकारात्मक विचार नष्ट होकर सकारात्मक प्रभाव उत्पन्न होते है| 8)शंख को महिला प्रजनन क्षमता का प्रतीक क्यों गया है ? इसकी जलीय उत्पत्ति और योनि से समानता को देखते हुए, इसके प्रतीकवाद को महिला प्रजनन क्षमता का प्रतिनिधित्व करने वाला भी कहा जाता है। चूँकि पानी अपने आप में प्रजनन क्षमता का प्रतीक है, इसलिए शंख, जो एक जलीय उत्पाद है, को महिला प्रजनन क्षमता का प्रतीक माना जाता है। प्राचीन ग्रीस में, मोतियों के साथ-साथ सीपों का उल्लेख यौन प्रेम और विवाह और मातृ देवी को दर्शाने के लिए किया जाता है।विभिन्न जादू और टोना-टोटका वाली वस्तुएं भी इस तुरही से बहुत करीब से जुड़ी हुई है। इस तरह का उपकरण बौद्ध युग से बहुत पहले से मौजूद था। इस कारण, यह तांत्रिक अनुष्ठानों का एक अभिन्न अंग बन गया है। 9)शंख को बजाते वक्त कितना कम्पन हो सकता है ? शंख को बजाते वक्त जितना कम्पन उत्पन्न होता है| उस कम्पन से ये धरती भी कांपने लगती है| पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब भूमि बंजर हो जाती थी तो उसकी लगातार पूजा –पाठ करते हुए बार –बार शंखनाद किया जाता था| जिससे सोई हुई बंजर भूमि को पुनः उपजाऊ बनाया जाता था| 10)शंख बजाने से शारीरिक लाभ ? शंख के अन्दर पानी रखकर पीने से दात मजबूत होते है क्योकि इसमें कैल्शियम फास्फेट पाया जाता है जो शरीर को मजबूत बनाता है , शंख बजाने से फेफड़े मजबूत होते है| चरक सहिंता के अनुसार बताया गया है कि अस्थमा के रोगियों को प्रतिदिन शंख बजाना चाहिए| शंख बजाने से खासकर वात और कफ़ को संतुलित करने में मदद मिलती है,शंख बजाने से शरीर की ऊर्जा का संतुलन होता है और जीवन शक्ति बढ़ती है शंख बजाने से रेक्टल मसल्स सिकुड़ती और फैलती हैं, जिससे गैस की समस्या दूर होती है, शंख बजाने से चेहरे की झुर्रियां कम होती हैं और चेहरे पर निखार आता है| 11)शंख बजाने से मन और दिमाग को कई फ़ायदे होते है ? शंख बजाने से मन और तंत्रिका तंत्र शांत होता है, इससे तनाव और चिंता कम होती है और विश्राम बढ़ता है,शंख बजाने से मानसिक स्पष्टता और भावनात्मक कल्याण में मदद मिलती है,शंख ध्वनि से रोग प्रतिरोधक शक्ति बढ़ती है। दिमाग से सम्बंधित मानसिक तनाव, ब्लडप्रेशर, मधुमेह, नाक, कान और पाचन से संबंधित रोगों में रक्षा होती है।
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