||शनि की साढ़े साती|| ||शनि देव का इतिहास|| 1)शनिदेव की उत्पत्ति कैसे हुई थी ? सूर्य की शादी विश्वकर्मा की पुत्री संज्ञा से हुई थी, संज्ञा और सूर्य देव की संतान हुई जिनका नाम वैवस्वत मनु, यम, यमुना, अश्विनी कुमार था , कुछ समय तो संज्ञा ने सूर्य के साथ रिश्ता निभाने की कोशिश की, लेकिन संज्ञा सूर्य के तेज को अधिक समय तक सहन नहीं कर पाईं तब संज्ञा ने एक उपाय सोचा, सूर्य देव को इस की भनक न हो इसलिए जाने से पहले वह संतान के लालन-पालन और पति की सेवा के लिए उन्होंने तपोबल से अपनी हमशक्ल छाया को उत्पन्न किया, छाया को पारिवारिक जिम्मेदारी सौंपकर संज्ञा पिता के घर चली गईं लेकिन पिता ने उनका इस कार्य का समर्थन नहीं किया और वापस उन्हें सूर्यलोक जाने को कहा, लेकिन संज्ञा नहीं मानी और वन में जाकर तपस्या करने लगी वहीं छाया रूप होने के कारण छाया को सूर्य देव के तेज से कोई परेशानी नहीं हुई और कुछ समय बाद छाया और सूर्य देव के मिलन से शनि, तपती, भद्रा और सावर्णि मनु का जन्म हुआ जन्म के समय से ही शनि देव श्याम वर्ण, लंबे शरीर, बड़ी आंखों वाले और बड़े केशों वाले थे, संज्ञा और छाया के बीच यह समझौता था कि वह संतान को जन्म नहीं देगी, जिसे छाया ने तोड़ दिया। जब संज्ञा को इस बात का पता चला, तो वह वापस लौट आई। सौतेली माँ होने के कारण वह शनि के प्रति विशेष रूप से दयालु नहीं थी। 2)शनि और यम के बीच क्या अंतर है ? सूर्य ने यम को कर्मों का स्वामी बना दिया और इसलिए वे मृत्यु के देवता बन गए और अपनी बेटी को भारत की सबसे पवित्र नदियों में से एक का दर्जा दिया, जो गंगा के बराबर है । जब उन्हें एहसास हुआ कि शनि के साथ जिस तरह से व्यवहार किया जा रहा है, उसमें कुछ गड़बड़ है, तो उन्हें सच्चाई का एहसास हुआ और उन्होंने अपनी गलती के लिए शनि को ज्योतिषीय चार्ट में कर्म का स्वामी बनाकर सुधार किया। शनि और यम के बीच अंतर यह है कि शनि को किसी के जीवनकाल के दौरान अच्छे और बुरे कर्मों का शासन और परिणाम देने के लिए कहा जाता है, जबकि भगवान यम जीवन के अंत के बाद ऐसा करते है। 3)शनि देव की अपने पिता सूर्य देव से दुश्मनी क्यों है ? जब शनिदेव का जन्म हुआ तो उनके रंग को देखकर सूर्यदेव ने छाया पर संदेह किया और उन्हें अपमानित करते हुए कह दिया कि यह मेरा पुत्र नहीं हो सकता। हालांकि माता के तप की शक्ति शनिदेव में भी आ गई थी और अपनी माता को अपमानित होते देख उन्होंने क्रोधित होकर अपने पिता सूर्यदेव पर दृष्टि डाली तो सूर्यदेव बिल्कुल काले पड़ गए और उनके घोड़ों की चाल भी रुक गई।आखिरकार परेशान होकर सूर्यदेव को भगवान शिव की शरण लेनी पड़ी, तब भगवान शिव ने उनको उनकी ग़लती का अहसास करवाया। जिसके बाद सूर्यदेव ने अपनी गलती के लिये क्षमा याचना की, तब जाकर उन्हें फिर से अपना असली रूप वापस मिला। यही कारण है कि सूर्य देव और शनि के बीच में पिता और पुत्र का मधुर संबंध न होकर हमेशा दुश्मनी रही।जिसके कारण शनि और सूर्य एक-दूसरे के साथ नहीं रहते, ज्योतिषीय दृष्टि से इन्हें युद्धरत ग्रह माना जाता है, ज्योतिष शास्त्र के मुताबिक जब किसी व्यक्ति की कुंडली में शनि और सूर्य एक ही भाव में बैठे हों तो उस व्यक्ति के अपने पिता या अपने पुत्र से कटु संबंध रहते है । 4)शिव ने शनि देव को क्या वरदान दिया ? पिता से बदला लेने के लिए शनि ने शिव की कठोर तपस्या कर उन्हें प्रसन्न किया। जब शिव ने उनसे वरदान मांगने को कहा तो शनि ने कहा कि पिता सूर्य ने मेरी माता छाया का अनादर कर उन्हें प्रताड़ित किया है, इसलिए आप मुझे पिता सूर्य से अधिक शक्तिशाली व पूज्य होने का वरदान दें। तब भगवान शिव ने वरदान दिया कि तुम श्रेष्ठ स्थान पाने के साथ ही सर्वोच्च न्यायाधीश और दंडाधिकारी भी रहोगे। साधारण मानव तो क्या देवता, असुर, सिद्ध, विद्याधर, गंधर्व व नाग सभी तुम्हारे नाम से भयभीत होंगे। तभी से शनिदेव का शनि, ग्रहों में सबसे शक्तिशाली और संपूर्ण सिद्धियों का दाता है। शनिदेव के हाथों में लोहे का चमत्कारिक अस्त्र है। यह प्रसन्न हो जाएं, तो रंक से राजा बना देते हैं और क्रोधित हो जाएं, तो राजा से रंक भी बना सकते है। ||शनि की साढ़े साती|| 1)शनि की साढ़े साती क्या होती है ? शनि की साढ़े साती, भारतीय ज्योतिष के अनुसार नवग्रहों में से एक ग्रह, शनि की साढ़े सात वर्ष चलने वाली एक प्रकार की ग्रह दशा होती है। ज्योतिष एवं खगोलशास्त्र के नियमानुसार सभी ग्रह एक राशि से दूसरी राशि में भ्रमण करते रहते है। शनि देव भगवान शिव के भक्त है। उन्हें न्याय का देवता कहा जाता है। जब शनि ग्रह लग्न से बारहवीं राशि में प्रवेश करता है तो उस विशेष राशि से अगली दो राशि में गुजरते हुए अपना समय चक्र पूरा करता है। शनि की मंथर गति से चलने के कारण ये ग्रह एक राशि में लगभग ढाई वर्ष यात्रा करता है, शनि की साढ़ेसाती तीन चरणों में बंटी होती है, जिनमें से हर चरण ढाई-ढाई साल का होता है इस प्रकार एक वर्तमान के पहले एक पिछले तथा एक अगले ग्रह पर प्रभाव डालते हुए ये तीन गुणा, अर्थात साढ़े सात वर्ष की अवधि का काल साढ़े सात वर्ष का होता है। भारतीय ज्योतिष में इसे ही साढ़े साती के नाम से जाना जाता है। 2)शनि की साढ़े साती की अवधि कितनी होती है ? ज्योतिषशास्त्रियों के अनुसार कुछ विशेष प्रकार की घटनाएं होती है जिनसे साढ़े साती चालू होने के संकेत मिलते है। इस दौरान असामान्य घटानाओं से आभास हो सकता है कि अवधि चालू है। ज्योतिष शनि के आरम्भ और समाप्ति को लेकर एक गणितीय विधि का आकलन करते है, जिसमें साढ़े साती के आरम्भ होने के समय और समाप्ति के समय के अनुमान हेतु चन्द्रमा के स्पष्ट अंशों की आवश्यकता होती है। चन्द्रमा को इस विधि में केन्द्र मान लिया जाता है। इस प्रकार साढ़े साती की अवधि में शनि तीन राशियों से निकलता है, तो तीनों राशियों के अंशों को कुल समय को दो भागों में विभाजित कर लिया जाता है। इस प्रक्रिया में चन्द्र के दोनों तरफ एक-एक अंश की दूरी बनती है। शनि जब इस अंश के आरम्भ बिन्दु पर पहुंचता है तब साढ़े साती का आरम्भ माना जाता है और जब अंतिम अंश को पार कर जाता है तब इसका अंत माना जाता है। 3)ज्योतिष शास्त्र के अनुसार व्यक्तियों पर इसका प्रभाव कैसे पड़ता है ? ज्योतिष शास्त्र के अनुसार अलग अलग राशियों के व्यक्तियों में इसका प्रभाव भी अलग अलग होता है। कुछ व्यक्तियों को साढ़े साती आरम्भ होने के कुछ समय पूर्व ही इसके संकेत मिल जाते है और अवधि समाप्त होने से पूर्व ही उसके प्रभावों से मुक्त हो जाते है, वहीं कुछ लोगों को देर से शनि का प्रभाव दिखाई पड़ता है और साढ़े साती समाप्त होने के कुछ समय बाद तक इसके प्रभाव समाप्त होते है। 4)शनि की साढ़े साती हमारे मानसिक संतुलन पर किस प्रकार प्रभाव डालती है ? मानसिक संतुलन पर भी इसका प्रभाव होता है।शनि का मकसद व्यक्ति को जीवन भर के लिए सीख देने का होता है, इसलिए पहले 2 वर्ष 6 माह के हिस्से में शनि व्यक्ति को मानसिक रूप से परेशान करता है, दूसरे हिस्से में आर्थिक, शारीरिक, विश्वास इत्यादि रूप से क्षति पहुंचाता है, और तीसरे और आखिरी हिस्से में शनि महाराज, अपने कारण जो जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई करवाते है। यह वो समय होता है, जब व्यक्ति को सत्य का ज्ञान होता है। शनि की साढ़े साती के दौरान, व्यक्ति को अपने कर्मों का फल भोगना पड़ता है । 5) शनि की साढ़े साती से राहत किस प्रकार मिलती है ? शिव की उपासना करने वालों को इससे राहत मिलती है। अत: नियमित रूप से शिवलिंग की पूजा व अराधना करनी चाहिए।पीपल को अर्घ्र देने से भी शनि देव प्रसन्न होते है। अनुराधा नक्षत्र में अमावस्या हो और शनिवार का योग हो, उस दिन तेल, तिल सहित विधि पूर्वक पीपल वृक्ष की पूजा करने से मुक्ति मिलती है। शनिदेव की प्रसन्नता हेतु शनि स्तोत्र का नियमित पाठ करना चाहिए। इसके अलावा हनुमान जी को भी रुद्रावतार माना जाता है। अतः उनकी आराधना भी इसके निवारण हेतु फ़लदायी होती है। मान्यता अनुसार नाव के तले में लगी कील और काले घोड़े का नाल भी इसमें सार्थक उपाय होते है। इनकी अंगूठी बनवाकर धारण कर सकते है। शनि से संबंधित वस्तुएं, जैसे लोहे से बने बर्तन, काला कपड़ा, सरसों का तेल, चमड़े के जूते, काला सुरमा, काले चने, काले तिल, उड़द की साबूत दाल, आदि शनिवार के दिन दान करने से एवं काले वस्त्र एवं काली वस्तुओं का उपयोग करने से शनि की प्रसन्नता प्राप्त होती है।शनि की दशा से बचने हेतु किसी योग्य पंडित से महामृत्युंजय मंत्र द्वारा शिव का अभिषेक कराएं तो भी मुक्ति मिलना संभव होता है। 6)शनि की साढ़े साती शुभ किस प्रकार होती है ? शनि की ढईया और साढ़े साती को प्रायः अशुभ एवं हानिकारक ही माना जाता है। विद्वान ज्योतिष के अनुसार शनि सभी व्यक्ति के लिए कष्टकारी नहीं होते है। शनि की दशा में बहुत से लोगों को अपेक्षा से बढ़कर लाभ, सम्मान व वैभव की प्राप्ति होती है। हालांकि कुछ लोगों को शनि की दशा में काफी परेशानी एवं कष्ट का सामना करना होता है। इस प्रकार शनि केवल कष्ट ही नहीं देते बल्कि शुभ और लाभ भी प्रदान करते है। इस दशा के समय यदि चन्द्रमा उच्च राशि में होता है तो अधिक सहन शक्ति आ जाती है और कार्य क्षमता बढ़ जाती है जबकि कमज़ोर व नीच का चन्द्र सहनशीलता को कम कर देता है व मन काम में नहीं लगता है। इससे समस्याएं और बढ़ जाती है। जन्म कुण्डली में चन्द्रमा की स्थिति का आंकलन करने के साथ ही शनि की स्थिति का आंकलन भी आवश्यक होता है। शनि यदि लग्न कुण्डली व चन्द्र कुण्डली दोनों में शुभ कारक है तो किसी भी तरह शनि कष्टकारी नहीं होता है। कुण्डली में स्थिति यदि इसके विपरीत है तो साढ़े साती के समय काफी समस्या और एक के बाद एक कठिनाइयों का सामना होता है। यदि चन्द्र राशि एवं लग्न कुण्डली उपरोक्त दोनों प्रकार से मेल नहीं खाते हों अर्थात एक में शुभ हों और दूसरे में अशुभ तो साढ़े साती के समय मिला-जुला प्रभाव मिलता है।
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