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सनातन धर्म में ब्राह्मण सिर पर चोटी या शिखा क्यों रखते है ?
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सनातन धर्म में ब्राह्मण सिर पर चोटी या शिखा क्यों रखते है ?

सनातन धर्म में ब्राह्मण सिर पर चोटी या शिखा क्यों रखते है ?

|| सनातन धर्म में ब्राह्मण सिर पर चोटी या शिखा क्यों रखते है || इतिहास  हमारी संस्कृति में हिंदुओं ने या कहें आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वालों ने अपने सिर पर हमेशा चोटी या शिखा रखी है। यह एक चीज ऐसी है, जिसके बारे में लोग बहुत कम जानते है और अभी तक चिकित्सा के क्षेत्र में यह प्रमाणित नहीं है कि मस्तिष्क का एक और हिस्सा है, जिसे योग पद्धति में पहचाना गया है, वह है बिंदु। बिंदु का मतलब है, सबसे छोटा चिह्न, जो आगे और विभाजित न हो सके। दुनिया भर की कई सभ्यताओं ने मस्तिष्क में बिंदु की मौजूदगी को स्वीकार किया है। अगर आप अपने कान के छिद्रों के साथ एक सीधी रेखा बनाएं और वहां से 45 डिग्री की रेखा बनाएं तो वह आपके सिर के पीछे कहीं जाकर खत्म होगी। उसी जगह को बिंदु कहते है। दुनिया भर की कई सभ्यताओं में ऐसा माना जाता है कि उस जगह को हमेशा सुरक्षित रखना चाहिए। भारत में, हिंदुओं ने वहां केशों का एक गुच्छा उगा लिया ताकि वह जगह सुरक्षित रहे। मगर जिन दूसरी सभ्यताओं में लोगों ने बाल कटवाए, उन्होंने उस जगह पर छोटी टोपियां पहननी शुरू कर दी या किसी तरह का कपड़ा रखने लगे। आप दुनिया में कहीं भी चले जाएं, आप देखेंगे कि अगर वे कोई ऐसी क्रिया कर रहे है, जिसे वे आध्यात्मिक मानते है, तो वे बिंदु को ढककर रखते है। पौराणिक कथाओं में सुना होगा कि ब्राह्मण वर्ग के पुरुष हमेशा अपने सिर पर चोटी रखते थे,हिंदू धर्म में, खास तौर पर ब्राह्मणों और आध्यात्मिक मार्ग पर चलने वालों के सिर पर चोटी रखने की परंपरा है, इसे शिखा भी कहा जाता है, चोटी रखने के कई कारण बताए जाते है,जो कर्मकांड, संस्कार आदि को संपन्न कराता है वह प्राचीनकाल में चोटीधारी होता था उसके सिर पर सिर्फ चोटी ही होती थी। दूसरा वह जो धर्म, शिक्षा और दीक्षा का कार्य करता था वह दाड़ी और जटाधारी होता था।लेकिन आज के इस दौर में भी ब्राह्मण वर्ग के कई पुरुषों के सिर पर चोटी होती है ब्राह्मण की चोटी को देखकर मन में ये सवाल तो आया ही होगा कि आखिर वो लोग अपने सिर पर चोटी क्यों रखते है और इसके पीछे क्या कारण हो सकता है ? 1) ब्राह्मण की चोटी रखने का कारण ? बच्चे का जब पहले साल के अंत, तीसरे साल या पांचवें साल में जब मुंडन किया जाता है तो सिर में थोड़े बाल रख दिए जाते है जिसे चोटी कहते है। इस कार्य को मुंडन संस्कार कहते है। सिर पर शिखा या चोटी रखने का संस्कार यज्ञोपवित या उपनयन संस्कार में भी किया जाता है। चोटी रखने से मस्तिष्क का संतुलन बना रहता है। ब्राह्मण पुरुषों के सिर पर चोटी रखने का सबसे बड़ा कारण सुषुम्ना नाड़ी को बताया जाता है कहा जाता है कि चोटी के ठीक नीचे ये नाड़ी होती है, जो कपाल तंत्र की दूसरी खुली जगहों की अपेक्षा ज्यादा संवेदनशील भी होती है। 2)चोटी रखने वाले भाग को क्या कहते है व इसका महत्व ? सुश्रुत संहिता में लिखा है कि मस्तक के ऊपर सिर पर जहां भी बालों का आवृत (भंवर) होता है, वहां सम्पूर्ण नाडिय़ों व संधियों का मेल होता है। इस स्थान को 'अधिपतिमर्म' कहा जाता है। इस स्‍थान पर चोंट लगने पर मनुष्य की तत्काल मौत हो जाती है।सुषुम्ना के मूल स्थान को 'मस्तुलिंग' कहते है। सिर के जिस स्थान पर चोटी रखी जाती है उसे सहस्त्रार चक्र भी कहते है।माना जाता है कि इस चर्क के नीचे ही मनुष्य की आत्मा निवास करती है। विज्ञान के अनुसार, यह स्थान मस्तिष्क केंद्र होता है। यहां से ही बुद्धि, मन, और शरीर के अंगों को नियंत्रित किया जाता है।मस्तिष्क के साथ ज्ञानेन्द्रियों-कान, नाक, जीभ, आंख आदि का संबंध है और कर्मेन्द्रियों-हाथ, पैर, गुदा, आदि का संबंध मस्तुलिंग से है। मस्तिष्क मस्तुलिंग जितने सामर्थ्यवान होते है, उतनी ही ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों की शक्ति बढ़ती है। मस्तिष्क को ठंडक की जरूरत होती है। जिसके लिए क्षौर कर्म और गोखुर के बराबर शिखा रखनी जरूरी होती है। अगर व्यक्ति में अज्ञानता या फैशन में आकर चोटी रखता है तो उसे फायदे से ज्यादा नुकसान हो सकता है। इसलिए चोटी किसी जानकार की सलाह के आधार पर ही रखना चाहिए। 3)कितनी बड़ी होनी चाहिए शिखा ? आधुनकि दौर में अब लोग सिर पर प्रतीकात्मक रूप से छोटी सी चोटी रख लेते है लेकिन इसका वास्तविक रूप यह नही है। वास्तव में शिखा का आकार गाय के पैर के खुर के बराबर होना चाहिए। इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि हमारे सिर में बीचोंबीच सहस्राह चक्र होता है। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार,सहस्त्रार चक्र का आकार गाय के खुर के समान माना गया है। इसलिए चोटी भी गाय के खुर के बराबर ही रखी जाती है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार, किसी व्यक्ति की कुंडली में राहु बुरा असर दे रहा हो, तो उसे सिर पर चोटी रखनी चाहिए। इससे राहु की दशा में लाभ मिलता है। इसी स्थान से शरीर के अंग, बुद्धि और मन नियंत्रित होते है। 4)पहले सभी ब्राह्मण हर रोज अपनी चोटी पकड़ कर क्यों खींचते थे ? पहले सभी ब्राह्मण हर दिन अपने बाल पकड़ कर खींचते थे रोज़ाना साधना से पहले वो चुटिया को खींचकर कसकर बांधते थे ऐसा करने से साधना बेहतर होती थी और परमात्मा के प्रति गहरी भावना उतपन्न होती थी,सिर पर चोटी रखकर आसानी से ताप को नियंत्रित किया जा सकता है, यही वजह है कि प्राचीन काल में ब्राह्मण हर दिन अपने बाल पकड़ कर खींचते थे। 5)शिखा रखने से मानव को मृत्यु के बाद मोक्ष कैसे प्राप्त होता है ? मृत्यु के समय आत्मा शरीर के द्वारों से बाहर निकलती है मानव शरीर में नौ द्वार बताये गए है दो आँखे, दो कान, दो नासिका छिद्र, दो नीचे के द्वार, एक मुह और दसवा द्वार यही शिखा या सहस्राह चक्र है जो सिर में होता है , कहते है यदि प्राण इस चक्र से निकलते है तो साधक की मुक्ति निश्चत है और सिर पर शिखा होने के कारण प्राण बड़ी आसानी से निकल जाते है और मृत्यु हो जाने के बाद भी शरीर में कुछ अवयव ऐसे होते है जो आसानी से नही निकलते, इसलिए जब व्यक्ति को मरने पर जलाया जाता है तो सिर अपने आप फटता है और वह अवयव बाहर निकलता है यदि सिर पर शिखा होती है तो उस अवयव को निकलने की जगह मिल जाती है। 6)शिखा रखने से मनुष्य के शरीर पर क्या प्रभाव पड़ता है ? शिखा रखने से मनुष्य प्राणायाम, अष्टांगयोग आदि यौगिक क्रियाओं को ठीक-ठीक कर सकता है। शिखा रखने से मनुष्य की नेत्रज्योति सुरक्षित रहती है। शिखा रखने से मनुष्य स्वस्थ, बलिष्ठ, तेजस्वी और दीर्घायुहोता है।

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